धार्मिक शिक्षा के साथ दुनियावी शिक्षा को तवज्जो दी जाए।

- इस्लामिक शिक्षा देने वाले मदरसों में अब परिवर्तन का दौर शुरू
देवबंद [24CN]: इस्लामिक शिक्षा देने वाले मदरसों में अब परिवर्तन का दौर शुरू हो चुका है। रविवार को मदरसों के सर्वे को लेकर देवबंद में उलेमाओं का जो सम्मेलन हुआ उसमें सबसे बड़ी बात यही हुई कि आने वाले समय में मदरसों की बड़ी कक्षाओं में पढ़ने के लिए छात्रों के लिए हाई स्कूल की शिक्षा अनिवार्य होगी। दारुल उलूम ने अपने यहां चलने वाली प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी अंग्रेजी विषयों को भी अनिवार्य कर दिया है। कंप्यूटर की शिक्षा की व्यवस्था पहले से ही यहां पर है। उलेमा कहना है कि अब समय आ गया है कि धार्मिक शिक्षा के साथ दुनियावी शिक्षा को तवज्जो दी जाए।
अरबी पंजुम (पांचवी) और बड़ी कक्षाओं में प्रवेश के लिए हाई स्कूल होगा अनिवार्य
जमीअत उलमा ए हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष दारुल उलूम के वरिष्ठ उस्ताद मौलाना अरशद मदनी ने यह स्पष्ट कर दिया कि दारुल उलूम में जल्द ही बड़ी कक्षाओं में केवल उन्हीं छात्रों का दाखिला होगा जिन्होंने देश के किसी भी मान्यता प्राप्त बोर्ड से हाई स्कूल की परीक्षा पास कर रखी हो’ उन्होंने यह भी बताया कि देश के सभी मदरसे इसके लिए अभी से तैयारी शुरू कर दें’ उन्होंने बताया कि इससे यह होगा कि मदरसों से डिग्री लेने के बाद भी छात्र अपनी दुनिया भी शिक्षा जारी रख सकेंगे डॉक्टर इंजीनियर प्रोफेसर या किसी भी तरह की दुनियावी शिक्षा हासिल कर पाएंगे और मौलवी के साथ जो कुछ भी बनना चाहेंगे बन सकेंगे ’जताई जा रही है की दारुल उलूम में अगले वर्ष से भी यह व्यवस्था शुरू की जा सकती है अन्य मदरसों में 5-6 साल का समय लग सकता है’
देश ही नही दुनिया के मदरसों में पढ़ने वाले अधिकतर छात्रों की यह तमन्ना रहती है कि दारुल उलूम देवबंद से वह मौलवीयत की डिग्री हासिल करें अब दारुल उलूम की बड़ी शिक्षाओं में पढ़ने के लिए हाई स्कूल करना भी अनिवार्य होगा। देवबंद दारुल उलूम की डिग्री को, कासमी, कहा जाता है। दारुल उलूम देवबंद की स्थापना मौलाना कासिम नानौतवी ने की थी इसलिए यहां की डिग्री को कासमी कहा जाता है।