लखनऊ। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने समान नागरिक संहिता पर एतराज जताया है। बोर्ड पदाधिकारियों और सदस्यों का कहना है कि मुस्लिम समाज इसे कतई स्वीकार नहीं करेगा। मदरसा दारुल तालीम और सनअत (डीटीएस) कानपुर के जाजमऊ में चल रहे दो दिवसीय अधिवेशन के अंतिम दिन रविवार को 11 प्रस्ताव पारित किए गए। इनमें वक्फ संपत्तियों को लेकर होने वाले विवाद और मतांतरण आदि प्रमुख रहे। बोर्ड ने जबरन मतांतरण और गैर धर्म में निकाह का विरोध किया।

दिल्ली से आए बोर्ड के मीडिया समन्वयक डा. कासिम रसूल इलियास ने अधिवेशन के बाद पत्रकार वार्ता में कहा कि संविधान में हर नागरिक को अपने धर्म में आस्था रखने और दूसरों को इसके बारे में बताने का अधिकार दिया गया है। बहु धार्मिक समाज में समान नागरिक संहिता उचित नहीं है। यह संविधान के मौलिक अधिकारों के विपरीत है। बोर्ड ने सरकार से मांग की है कि वो मुसलमानों पर समान नागरिक संहिता न थोपे। उन्होंने कहा कि बोर्ड जबरन मतांतरण कराने वालों के खिलाफ है। मुस्लिम समाज से इसके विरोध की अपील की गई है।

वक्फ करने वाले किसी व्यक्ति, संगठन या सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वो उसे बेचे या वक्फ की मंशा के खिलाफ किसी उपयोग में लाए। यह मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों और शरिया कानून में हस्तक्षेप है। अधिवेशन में बोर्ड के अध्यक्ष सैयद राबे हसन नदवी, महासचिव मौलाना खालिद रशीद सैफलुल्लाह रहमानी, सचिव मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, कल्बे जव्वाद, उमरैन महफूज रहमानी, सदस्य यासीन उस्मानी, फजलुर्रहीम मुजद्दिदी और निकहत परवीन, असगर अली, सज्जाद नोमानी, अब्दुल्ला नदवी मौजूद रहे।

महिला सुरक्षा के लिए प्रभावी कानून बने : अधिवेशन में सरकार से मांग की गई कि वो महिला सुरक्षा के प्रभावी कानून लाकर उनका सख्ती से पालन कराए। इस्लाम के पैगंबर पर टिप्पणी करने वालों पर सख्त कार्रवाई की मांग की गई। अधिवेशन में अल्पसंख्यक, दलित अन्य कमजोर वर्गों के खिलाफ बढ़ता अत्याचार रोकने के लिए सरकार से विशेष पहल की अपेक्षा की गई।

अंतरधार्मिक विवाह बिगाड़ता सद्भाव, इससे बचें : अधिवेशन में मुस्लिम समाज से अपील की गई कि शरीअत का पालन करें, सादगी से निकाह करें और दहेज न मांगें। आपसी विवादों को मध्यस्थता से सुलझाएं और फिर भी बात न बने तो दारुल कजा में जाएं। अंतरधार्मिक विवाह से बचें, क्योंकि यह समाज में विभाजन पैदा करता है और सांप्रदायिक सद्भाव को प्रभावित करता है।

धार्मिक पुस्तकों की व्याख्या से बचें सरकारें : धार्मिक नियम और पुस्तकें आस्था से जुड़ी हैं, इसलिए इसकी व्याख्या का अधिकार धर्म समझने वालों को ही है। सरकारों या अन्य संस्थाओं को धार्मिक पुस्तकों या धार्मिक शब्दावलियों की व्याख्या करने से बचना चाहिए।