प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री, अदालत का फैसला मानने के लिए सभी बाध्य : सुप्रीम कोर्ट

प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री, अदालत का फैसला मानने के लिए सभी बाध्य : सुप्रीम कोर्ट

खास बातें

  • सर्वोच्च न्यायालय ने सबरीमाला पर फैसले के बाद उस पर होने वाले विरोध पर जताया एतराज
  • कहा, संविधान किसी को भी खुलेआम कोर्ट के फैसले की धज्जियां उड़ाने की इजाजत नहीं देता
  • फैसले की स्वस्थ आलोचना की इजाजत है, इसे विफल करने के लिए प्रोत्साहित करने की नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 उम्र की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने के पांच सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले के बाद बड़े पैमाने पर हुए विरोध प्रदर्शन पर कड़ा एतराज जताया है। कोर्ट ने कहा है कि जब कोर्ट कोई फैसला सुनाता है तो उसे मानना सभी के लिए बाध्यकारी होता है, चाहे वह प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री।

जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन और जस्टिस डीवाई चंदचूड़ ने बहुमत द्वारा इस मामले को सात सदस्यीय पीठ के पास भेजने से इत्तफाक न रखते हुए कहा है कि जो भी हमारे फैसले में सहयोग देने का काम नहीं करता है, वह अपने संकट की स्थिति में ऐसा करता है। जहां तक केंद व राज्य के मंत्रियों और सांसद व विधायकों का सवाल है अगर वे ऐसा करते हैं तो वे भारत के संविधान की मर्यादा कायम रखने, संरक्षण और रक्षा करने की संवैधानिक शपथ का उल्लंघन करेंगे।

जस्टिस नरीमन द्वारा लिखे गए इस फैसले में कहा गया है कि फैसले को लेकर स्वस्थ आलोचना करने की इजाजत है भले ही वह फैसला देश की सबसे बड़ी अदालत का ही क्यों न हो लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले को विफल करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने की इजाजत हमारा संविधान नहीं देता।


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