UP में वोटर लिस्ट पर अखिलेश यादव का बड़ा दावा- मौर्य, पाल, बघेल और राठौड़ समेत कई पिछड़े समूहों के काटे जा रहे वोट

समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव ने सोमवार को निर्वाचन आयोग पर पिछड़े समुदायों के मतदाताओं के नाम हटाने और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पक्ष में काम करने का आरोप लगाया.
यादव ने संसद परिसर में पत्रकारों से बात करते हुए आरोप लगाया कि भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए मौर्य, पाल, बघेल और राठौड़ समुदायों सहित कई पिछड़े समूहों के मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए जा रहे हैं.
यादव ने दावा किया कि उनकी पार्टी ने उन निर्वाचन क्षेत्रों की पहचान कर ली है जहां वे मामूली अंतर से हारे थे और जहां मतदाताओं के नाम हटाए जाने की भूमिका थी.
उन्होंने आरोप लगाया, ‘यही वह चीज़ है जिसकी हम कम समय में पहचान कर सकते हैं. अगर हमें मतदाता सूचियां हमारे द्वारा मांगे प्रारूप में मिल जाएं, तो हम ऐसे और मामले उपलब्ध करा सकते हैं. 2019 में डाले गए वोट 2022 तक हटा दिए गए. मतदाता पहचान पत्र बनाने की एक उचित प्रक्रिया भी है, लेकिन उसकी अनदेखी की जा रही है.’
पूर्व मुख्यमंत्री ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की.
यादव ने कहा, ‘ हमारी मांग सीधी-सादी है कि कम से कम जिला स्तर के एक अधिकारी को निलंबित किया जाए जो जिम्मेदार है. अगर आप ऐसा करेंगे तो देश में कहीं भी एक भी वोट नहीं कटेगा. हमें बताइए कि 2019, 2022 या 2024 में ऐसी किसी भी चूक के लिए एक भी अधिकारी को हटाया गया हो.’
उन्होंने दावा किया, ‘उत्तर प्रदेश में जब से भाजपा सत्ता में आई है, तब से एक भी अधिकारी को दंडित नहीं किया गया है, चाहे कितनी भी शिकायतें दर्ज हों. ऐसा क्यों? इसका मतलब है कि निर्वाचन आयोग भाजपा की ज़्यादा सुनता है.’
सपा नेता ने एक मामले का भी हवाला दिया. उनके अनुसार, इस मामले में भाजपा की एक विधायक ने अपने बूथ पर 400 फर्जी वोट बनाए थे, जिससे सपा को 200 से अधिक वोट हटवाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
उन्होंने कहा, ‘इस तरह का सत्यापन राजनीतिक दलों द्वारा किया जा रहा है, लेकिन निर्वाचन आयोग ऐसी कवायद क्यों नहीं करता?’
चुनाव के दौरान अधिकारियों की नियुक्ति के तरीके की आलोचना करते हुए यादव ने कथित जाति-आधारित चयन पर आपत्ति जताई.
उन्होंने कहा, ‘हमारी मांग बिल्कुल साफ है कि बूथ स्तर अधिकारी (बीएलओ) की नियुक्ति जाति के आधार पर न की जाए, पीठासीन अधिकारियों की नियुक्ति जाति के आधार पर न की जाए. ऐसा लगता है कि सत्ताधारी पार्टी ही तय करती है कि कौन सा अधिकारी उनके लिए सबसे उपयुक्त है.’
