नई दिल्ली। गन्ना क्षेत्र में दो चरणों का चुनावी घमासान तीसरे चरण में आलू उत्पादक क्षेत्र में पहुंच गया है। दरअसल उत्तर प्रदेश के मध्य, पश्चिम और बुंदेलखंड क्षेत्र के 16 जिलों की 59 सीटों में से 36 सीटों पर आलू किसानों का दबदबा है। यह देश का सबसे बड़ा आलू उत्पादक क्षेत्र है, इसलिए यहां की सियायत भी आलू के इर्द-गिर्द घूमती है। चुनावी महासमर में उतरीं सभी प्रमुख पार्टियों के चुनावी घोषणा पत्र में आलू से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता दी गई है।

पिछले प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश में भाजपा

कहने को तो यह सपा का गढ़ है लेकिन पिछले चुनाव में वह यहां हाशिए पर पहुंच गई थी। इस बार सपा को यहीं से संजीवनी की आस है। वहीं अखिलेश व शिवपाल को यहीं घेरकर भाजपा अपने पिछले प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश में जुटी है।

ये मुद्दे अहम 

किसानों के लिए आलू की कीमतों में तेज उतार-चढ़ाव, भंडारण की सुविधा और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी), उन्नत प्रजाति के बीजों की आपूर्ति जैसे मुद्दे अहम हैं। घोषणा पत्र में सभी प्रमुख दलों ने आलू से संबंधित मसलों को उठाने के साथ ही उनके समाधान का मुद्दा शामिल किया है।

दिग्गज नेताओं को मैदान में उतारा

भाजपा के साथ सपा और कांग्रेस ने इन मुद्दों को चुनाव में प्रमुख रूप से उठाकर आलू किसानों को लुभाने की कोशिश की है। सपा का मजबूत गढ़ माने जाने वाले इस क्षेत्र में भाजपा ने कड़ी टक्कर देने के लिए अपने दिग्गज नेताओं को मैदान में उतारा है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की उनके चुनाव क्षेत्र मैनपुरी के करहल में ही घेरेबंदी कर दी है। इसी से पार पाने के लिए सपा को अपने बुजुर्ग नेता मुलायम सिंह यादव को करहल में वोट मांगने के लिए उतारना पड़ा।

घोषणा पत्र में बड़े वादे

सपा के इस गढ़ को भेदने के लिए भाजपा ने रणनीतिक तैयारी के साथ-साथ आलू और टमाटर को एमएसपी के दायरे में लाने की घोषणा की है। इसे शत प्रतिशत सुनिश्चित करने के लिए 1,000 करोड़ रुपये की मूल्य स्थिरीकरण निधि (पीएसएफ) बनाने का घोषणा पत्र में वादा भी किया है। आलू उत्पादक इस क्षेत्र के लिए यह बड़ा तोहफा हो सकता है। सपा ने भी कन्नौज को आलू निर्यात क्लस्टर बनाने का वादा किया है। जबकि कांग्रेस का वादा है कि उसकी सरकार बनी तो प्रत्येक ब्लाक में कोल्ड स्टोरेज स्थापित किए जाएंगे।

अच्‍छी कीमतें नहीं मिलना बड़ी समस्‍या 

दरअसल, यहां कई बार आलू की अच्छी पैदावार होने के बाद बिक्री नहीं होने से उपज को खुले में फेंकना पड़ता है। कई मर्तबा खुले बाजार में कीमतें इतनी नीचे चली जाती हैं कि कोल्ड स्टोरेज का भाड़ा चुकाना भी भारी पड़ जाता है। उत्तर प्रदेश में तकरीबन छह लाख हेक्टेयर रकबे में आलू की खेती होती है, जिससे सालाना 1.47 करोड़ टन पैदावार होती है।

तीसरे चरण के तीन हिस्‍से बेहद महत्‍वपूर्ण 

बुंदेलखंड से अवध क्षेत्र तक फैले तीसरे चरण को तीन हिस्सों में बांटकर देखें तो पश्चिमी क्षेत्र के फीरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, कासगंज और हाथरस हैं जबकि अवध क्षेत्र के कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, कन्नौज, इटावा और फर्रुखाबाद हैं। इसी चरण में बुंदेलखंड के पांच जिले शामिल हैं, जिनमें झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा हैं। यादव बहुल सीटों पर 2017 में सपा का सूपड़ा साफ हो गया था। इन 29 सीटों में से उसे मात्र छह सीटें मिल पाई थीं। जबकि 23 सीटें भाजपा को मिली थीं जबकि 2012 में यहां सपा को 25 सीटें मिली थीं।