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‘आधार कार्ड को नागरिकता प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता’, SIR विवाद में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

‘आधार कार्ड को नागरिकता प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता’, SIR विवाद में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले SIR करवाने के मामले में विवाद पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने कहा है कि चुनाव आयोग सही है यह कहने में कि आधार को अंतिम प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, इसकी जांच-परख जरूरी है।

कोर्ट में क्या दलील दी गई?

मामले में सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि 1950 के बाद जन्मा हर व्यक्ति भारत का नागरिक है लेकिन यहां प्रक्रिया में भारी गड़बड़ी है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक छोटे से विधानसभा क्षेत्र में 12 लोगों को मृत दिखा दिया गया, जबकि वे जिंदा है। BLO ने कोई काम नहीं किया। सीनियर एडवोकेट गोपाल एस. ने कोर्ट को बताया कि 65 लाख नाम हटाए गए हैं, यह सामूहिक बहिष्करण है। वहीं, चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह सिर्फ ड्राफ्ट रोल है। इतने बड़े अभ्यास में छोटी-मोटी गलती हो सकती है, लेकिन यह कहना कि मृत जीवित हैं, सही नहीं।

पढ़ें सुनवाई में क्या क्या हुआ?

  • जस्टिस जॉयमाला बागची ने कहा कि ड्राफ्ट रोल से पहले जो तैयारी के कदम होते हैं, वह सही तरीके से फॉलो नहीं हुए तो यह गंभीर मामला है। कोर्ट ने कहा कि जिन लोगों को गलत तरीके से मृत दिखाया गया है, उन्हें सुधारा जाएगा।
  • सिब्बल ने कहा कि जस्टिस बागची ने बताया कि फॉर्म 4 के चरण में यह आवश्यकता है। 4 ड्राफ्ट है, अगर मुझे बाहर रखा गया है और मैं शामिल होना चाहता हूँ, तो मैं फॉर्म 6 भरता हूं। जस्टिस बागची ने कहा कि इन रिपोर्टों के आधार पर, बीएलओ नियम 10 के अनुसार एक ड्राफ्ट रोल तैयार करता है। सिब्बल ने कहा कि कृपया फॉर्म 4 देखें, वे मुझसे क्या चाहते हैं। नाम और विवरण-नागरिक का नाम, पिता/माता/पति का विवरण, आयु, हस्ताक्षर।
  • SIR प्रक्रिया के नियमों पर चर्चा चल रही है…सिब्बल ने उन्होंने इमोनेर्शन फॉर्म में क्या पूछा है? ऐसा कुछ भी नहीं। फॉर्म देखिए, जिसके बारे में उनका कहना है कि उन्होंने लोगों से भरने को कहा है। इसका फॉर्म 4 से कोई लेना-देना नहीं है। पूरी प्रक्रिया कानून के विरुद्ध है, उन्हें ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है।
  • जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि फॉर्म में कहाँ लिखा है कि सभी दस्तावेज़ होने चाहिए?
  • सिब्बल ने कहा कि बुनियादी बात गायब है।
  • जस्टिस कांत ने कहा कि यह सच है या आशंका, देखते हैं। मकसद सुविधा देना है, आधार कार्ड पर आते हैं। इसमें लिखा है ‘नीचे दी गई सूची से’ ज़रूरी नहीं कि आपको सभी दस्तावेज़ देने ही हों।
  • सिब्बल ने कहा कि बिहार के लोगों के पास ये दस्तावेज़ नहीं हैं, यही बात है।
  • जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि बिहार भारत का हिस्सा है। अगर बिहार के पास नहीं है, तो दूसरे राज्यों के पास भी नहीं होगा। ये कौन से दस्तावेज़ हैं? अगर आप केंद्र सरकार के कर्मचारी हैं, तो स्थानीय/एलआईसी द्वारा जारी कोई पहचान पत्र/दस्तावेज।
  • सिब्बल ने कहा कि वे कह रहे हैं कि इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती। जन्म प्रमाण पत्र की बात करें तो केवल 3.056% के पास ही है। पासपोर्ट 2.7% और 14.71 के पास मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र हैं
  • जे. कांत: यह साबित करने के लिए कुछ तो होना ही चाहिए कि आप भारत के नागरिक हैं… हर किसी के पास […] प्रमाणपत्र होता है, सिम खरीदने के लिए इसकी ज़रूरत होती है। ओबीसी/एससी/एसटी प्रमाणपत्र…
  • सिब्बल ने कहा कि वे 2003 के लोगों को दिए जा रहे किसी भी दस्तावेज़ से बाहर कर रहे हैं। ये 2025 के रोल हैं।
  • जस्टिस कांत ने कहा कि हम पूछ रहे हैं कि अगर आप प्रक्रिया को ही चुनौती दे रहे हैं, तो आप कट-ऑफ तारीख पर सवाल उठा रहे हैं। तो आइए इस पर आते हैं कि क्या चुनाव आयोग के पास ऐसा अधिकार है? अगर यह मान लिया जाता है कि चुनाव आयोग के पास ऐसा अधिकार नहीं है, तो मामला खत्म।
  • सिब्बल ने कहा कि यह सही है। लेकिन वे यह भी कहते हैं कि अगर मैं 2003 के रोल में था, और मैंने गणना फॉर्म दाखिल नहीं किया है, तो मुझे बाहर कर दिया जाएगा। मुझे इस पर भी आपत्ति है।
  • जस्टिस बागची ने कहा कि नियम 12 कहता है कि अगर आप 2003 के रोल में नहीं हैं, तो आपको दस्तावेज़ देने होंगे।
  • सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल से कहा कि हम जानना चाहते हैं कि आपके जो आरोप हैं वो कल्पना मात्र हैं या फिर उनकी कोई जमीनी हकीकत है।
  • सिब्बल ने कहा कि यही हमारा तर्क है। करोड़ों लोगों के नाम बाहर होने की संभावना है। अक्टूबर में चुनाव हैं, उन्हें ऐसा क्यों करना चाहिए? वे अपने जवाब में कहते हैं कि उन्होंने कोई जाँच नहीं की। कुल 7.9 करोड़ मतदाता, वे कहते हैं कि 7.24 करोड़ ने फॉर्म भरे हैं, 22 लाख मर चुके हैं (यह बिना जाँच के है), 7 लाख पहले ही नामांकित हो चुके हैं।
  • जस्टिस कांत ने कहा कि इसका मतलब है कि 7.24 करोड़ जीवित हैं। 22 लाख मर चुके हैं। वे करोड़ों कहाँ हैं जिनके बारे में आप कह रहे हैं।
  • सिब्बल ने कहा कि 4.96 करोड़ 2003 की मतदाता सूची का हिस्सा हैं। हमारे पास लगभग 4 अंक बचे हैं।
  • जस्टिस बागची ने कहा कि जाहिर है कि एसआईआर में मृत लोगों को हटाया जाएगा। इसमें क्या आपत्ति है।
  • जस्टिस सूर्यकांत: चुनाव आयोग सही है यह कहने में कि आधार को अंतिम प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, इसकी जांच-परख जरूरी है।
  • वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि उन्होंने कहीं भी यह नहीं बताया कि यह उन 65 लाख लोगों की सूची है और 65 लाख लोगों में से ये वे हैं जो मर चुके हैं और ये वे हैं जो स्थानांतरित हो गए हैं। उन्होंने जवाब दाखिल कर कहा है कि उन्हें जानकारी देने की ज़रूरत नहीं है।
  • चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि हमने बीएलए को दिया है, पूरी तरह से झूठा बयान है। अदालत को गुमराह किया जा रहा है।
  • भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग के पास पूरी जानकारी है। वे कह रहे हैं कि हम आपको जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि उनके पास जानकारी नहीं है। इससे भी ज़्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि चुनाव आयोग के बीएलओ ने ‘अनुशंसित/अनुशंसित नहीं’ लिखा है और हमें एक व्हिसलब्लोअर के ज़रिए दो ज़िलों के संबंध में इनकी सूची मिली है। हमें जो पता चला है वह चौंकाने वाला है, जिन लोगों ने फॉर्म भरे हैं उनमें से 10-12% मतदाता अनुशंसित नहीं हैं! इसका आधार क्या है? देश के इतिहास में चुनाव आयोग ने ऐसा पहले कभी नहीं किया।
  • सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के खिलाफ याचिकाकर्ताओं से कहा: अगर 7.9 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 मतदाताओं ने जवाब दिया तो यह 1 करोड़ मतदाताओं के गायब होने की बात को खारिज करता है।
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