मेरठ में दिखी सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल, हिंदू भाई के निधन पर मुस्लिम समाज ने उठाई अंतिम संस्कार की हर जिम्मेदारी

मुस्लिमों के कंधे पर हिंदू भाई की अर्थी। राम नाम सत्य के साथ चल रही शव यात्रा। मंगलवार को कौमी एकता के मिसाल की यह तस्वीर कई सांप्रदायिक दंगे देख चुके मेरठ शहर के लिए किसी सुखद आश्चर्य से कम नहीं थी। लॉकडाउन और पवित्र रमजान माह का यह पैगाम देर तक रहेगा और दूर तक जाएगा।

शाहपीरगेट स्थित कायस्थ धर्मशाला में नीचे भगवान चित्रगुप्त का ऐतिहासिक मंदिर है। धर्मशाला के प्रथम तल पर मंदिर के पुजारी रमेशचंद माथुर (68) परिवार के साथ रहते थे। काफी समय से वह बीमार चल रहे थे। मंगलवार दोपहर करीब दो बजे उनका निधन हो गया। घर पर पत्नी रेखा माथुर और छोटा बेटा चंद्रमौलि थे। बड़ बेटा दिल्ली में था। लॉकडाउन के चलते पहुंच नहीं सका। अर्थी को चार कंधों की जरूरत थी। ऐसे में शाहपीरगेट के मुस्लिम आगे आए और अंतिम संस्कार से पहले की रस्में पूरी कराने के साथ अर्थी को कंधा भी दिया। सूरजकुंड श्मशान घाट तक पैदल ले गए अर्थी

शाहपीर गेट कायस्थ धर्मशाला से सूरजकुंड श्मशान घाट करीब 2.5 किमी. है। कुछ लोगों ने सूरजकुंड से शव वाहन मंगाने के लिए कहा। लेकिन मुस्लिम भाइयों ने कहा कि चाचा को तो हम पैदल ही लेकर जाऐंगे। पार्थिव शरीर को अपने कंधों से श्मशान घाट पहुंचाया। रास्ते में जिसने भी यह दृश्य देखा, हैरान रह गया। कौमी एकता की इस मिसाल को देखकर तारीफ करने से नहीं रोक सके।

छोटे बेटे चन्द्रमोली ने दी चिता को मुखाग्नि
बड़े बेटे कमल माथुर की तबीयत खराब होने के कारण 4 दिन पहले ही दिल्ली गए थे। ऐसे में दोपहर बाद अनुमति मिलना कठिन था। जिसके बाद छोटे बेटे चंद्रमौलि माथुर ने चिता को मुखाग्नि दी। पड़ोसी आकिल अंसारी ने ही क्रियाकर्म के लिए जरूरी सामान जुटाया।

आकिल ने बताया वह रमेशचंद को बड़ा भाई मानते थे। आसपास के सभी लोग और बच्चे पूरे परिवार का सम्मान करते हैं। दोस्त राजीव शर्मा ने बताया रमेशचंद की माता और उनकी बेटी का अंतिम संस्कार भी मुस्लिमों ने कराया था।
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