सुपुर्द-ए-खाक करने से पहले लिया पंच की मौत का बदला, 4 आतंकी ढेर

सुपुर्द-ए-खाक करने से पहले लिया पंच की मौत का बदला, 4 आतंकी ढेर

श्रीनगर। श्रीनगर के खोनमोह इलाके के पंच काे सुपुर्द-ए-खाक करने से पहले ही सुरक्षाबलों ने उनकी मौत का बदला ले लिया। आज सुबह पंच निसार अहमद भट का शव जिला शोपियां के डांगम गांव में एक बाग से मिला था। पुलिस सूत्रों का कहना है कि शव की बरामदगी के बाद से ही पुलिस व सेना ने अपने खुफिया तंत्रों को सक्रिय कर दिया था। उन्हें शक था कि पंच को मारने वाले आतंकी अभी आसपास के किसी इलाके में ही छिपे हुए हैं।

पुलिस के आइजी कश्मीर विजय कुमार ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि पंच की हत्या में अल-बदर के जिला कमांडर शाकूर पारे और उसके साथी सुहेल भट का हाथ था, आज शोपियां में जिन चार आतंकवादियों को सुरक्षाबलों ने ढेर किया है, उनमें ये दोनों भी शामिल हैं।

पुलिस सूत्रों ने बताया कि दोपहर बाद उन्हें विश्वसनीय सूत्रों से जिला शोपियां के गांव किलोरा में कुछ संदिग्ध आतंकवादी देखे जाने की सूचना मिली। सेना की 44आरआर, जम्मू-कश्मीर की एसओजी और सीआरपीएफ के जवानों की संयुक्त टीम इलाके में पहुंची और तलाशी अभियान शुरू कर दिया। ये आतंकवादी एक मकान में छिपे हुए थे। आतंकवादियों के सुरक्षाबलों को नजदीक आते देख उन पर गोलीबारी शुरू कर दी। करीब तीन घंटे तक चली इस मुठभेड़ में अल बदर मुजाहिदीन के जिला कमांडर शाकूर पारे, उसका साथी सुहेल भट समेत चार आतंकवादी मारे गए हैं। एक आतंकवादी के आत्मसमर्पण करने की भी जानकारी मिली है।

कश्मीर में अल-बदर : सूत्रों के अनुसार कश्मीर में अल-बदर की स्थापना वर्ष 1995 के आसपास हुई। वर्ष 1996 के बाद कश्मीर में अल-बदर ने अपनी गतिविधियों को खुलकर अंजाम देना शुरू किया। कुछ वर्षो तक यह संगठन जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती इलाकों में ही सीमित रहा परंतु बाद में इसने वादी के अंदरूनी इलाकों में अपना विस्तार करना शुरू कर दिया। सुरक्षाबलों ने वर्ष 2016 में अल-बदर की कश्मीर में मौजूदगी की पुष्टि की। कश्मीर घाटी में आतंकी घटनाओं में बढ़ोतरी करने के लिए अल-बदर मुजाहिदीन ने स्थानीय युवकों की भर्ती पर ज्यादा जौर दिया। इसके बाद अल-बदर वर्ष 2005 तक राज्य में पूरी तरह सक्रिय रहा। सुरक्षाबलों द्वारा जारी अभियान के बाद संगठन में स्थानीय कैडर की संख्या नाममात्र रह गई। अचानक से संगठन ने कश्मीर में अपनी गतिविधियां बंद कर दी। वर्ष 2014 तक कश्मीर में इस संगठन का कोई वजूद नहीं था। परंतु बुरहान वानी के मरने के बाद घाटी में बढ़की हिंसा की आग के बीच अल-बदर फिर सक्रिय हो गया।  सूत्रों का कहना है कि पिछले कुछ महीनों के दौरान इस संगठन ने एक बार फिर स्थानीय युवाओं की भर्ती पर जोर देना शुरू कर दिया है।


विडियों समाचार