25-30 KM दूरी से ही दुश्मन के हमलों को नाकाम कर देगी QR-SAM, सैन्य बलों को जल्द ही इस मिसाइल प्रणाली से लैस करेंगे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह

रक्षा मंत्रालय जल्द ही सेना के लिए नई स्वदेशी क्विक रिएक्शन सरफेस-टू-एयर मिसाइल (QR-SAM) प्रणालियों की तीन रेजीमेंटों की खरीद के लिए ₹30,000 करोड़ के प्रस्ताव को प्रारंभिक मंजूरी देने के मामले पर विचार करेगा। रिपोर्टों के मुताबिक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) इस माह के अंत में इन मोबाइल QR-SAM प्रणालियों के लिए ‘आवश्यकता की स्वीकृति’ (Acceptance of Necessity – AoN) देने पर विचार करेगी। हम आपको बता दें कि ये प्रणालियाँ दुश्मन के लड़ाकू विमानों, हेलिकॉप्टरों और ड्रोन को 25 से 30 किलोमीटर की दूरी तक रोकने के लिए डिजाइन की गई हैं।
यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया है जब भारत की मौजूदा बहु-स्तरीय वायु रक्षा प्रणाली ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ (7 से 10 मई के बीच हुई झड़पों) के दौरान पाकिस्तान द्वारा छोड़े गए तुर्की मूल के ड्रोन और चीनी मिसाइलों के हमलों को नाकाम करने में अहम भूमिका निभाई थी। हम आपको बता दें कि पिछले तीन-चार वर्षों में DRDO और सेना ने QR-SAM प्रणालियों का विभिन्न प्रकार के खतरों और उच्च गति वाले हवाई लक्ष्यों के विरुद्ध परीक्षण किया है, ताकि दिन और रात दोनों स्थितियों में इनकी क्षमताओं का मूल्यांकन किया जा सके। बताया जा रहा है कि रक्षा क्षेत्र की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियाँ— भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL) मिलकर इन प्रणालियों का निर्माण करेंगी।
इन प्रणालियों के बारे में जानकारी देते हुए एक अधिकारी ने कहा, “QR-SAM प्रणालियाँ चलते-चलते संचालन करने में सक्षम हैं, जिनमें सर्च और ट्रैक की सुविधा है और वे कम समय के विराम पर फायर कर सकती हैं।
इन्हें टैंक और इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल्स के साथ-साथ चलने के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है ताकि सामरिक युद्धक्षेत्र में उन्हें हवाई सुरक्षा प्रदान की जा सके।” हम आपको बता दें कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान असाधारण प्रदर्शन करने वाली आर्मी एयर डिफेंस (AAD) को वास्तव में QR-SAM की 11 रेजीमेंटों की आवश्यकता है। हालांकि सेना स्वदेशी ‘आकाश’ प्रणाली की रेजीमेंटों को भी शामिल करती जा रही है, मगर वर्तमान में इसकी अवरोधन क्षमता लगभग 25 किमी है।
हम आपको बता दें कि QR-SAM प्रणालियों का समावेश वायुसेना और सेना की मौजूदा वायु रक्षा नेटवर्क को और मज़बूत करेगा। जहां तक सैन्य बलों के पास पहले से मौजूद प्रणालियों की बात है तो आपको बता दें कि इसमें रूसी S-400 ‘त्रिउम्फ’ लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है जिसकी 380 किमी अवरोधन क्षमता है। इसके अलावा हमारे पास इज़राइल के साथ संयुक्त रूप से विकसित बाराक-8 मीडियम रेंज SAM सिस्टम है जिसकी क्षमता 70 किमी की है। साथ ही हमारे पास रूसी ‘इगला-एस’ कंधे पर दागी जाने वाली मिसाइलें हैं जिसकी क्षमता 6 किमी की है। साथ ही उन्नत एल-70 एंटी-एयरक्राफ्ट गन (3.5 किमी) और स्वदेशी एकीकृत ड्रोन डिटेक्शन व इंटरडिक्शन सिस्टम भी है जिसकी क्षमता 1-2 किमी की है।
हम आपको यह भी बता दें कि DRDO बहुत ही कम दूरी की वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली (VSHORADS) भी तैयार कर रहा है जिसकी अवरोधन क्षमता 6 किमी है मगर असली “गेम-चेंजर” वह वायु रक्षा प्रणाली होगी जिसकी रेंज 350 किमी होगी और जिसे महत्वाकांक्षी ‘प्रोजेक्ट कुशा’ के तहत विकसित किया जा रहा है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, भारत इस लंबी दूरी की प्रणाली को 2028-2029 तक संचालन में लाने की योजना बना रहा है। सितंबर 2023 में रक्षा मंत्रालय ने इसकी पाँच स्क्वाड्रनों की खरीद के लिए ₹21,700 करोड़ की AoN मंजूरी दी थी।